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कवि घनश्याम ठक्कर गुजराती काव्यसंग्रह |
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कवि घनश्याम ठक्कर गुजराती काव्यसंग्रह |
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भूरी शाहीनां खळखळ
कवि घनश्याम ठक्कर गुजराती सीडी काव्यसंग्रह |
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बने न बने |
गझल |
घनश्याम ठक्कर |
वक्त के टुकडों से ये जिंदगी बने न बने.
ईंट के जुड़ने से घर की खुशी बने न बने.!
रिश्तों को तोडने को दिल भी तोडना होगा,
दूर जानेसे कोई अजनबी बने न बने!
तेरी शमा का साथ इस वजह से मांगा है,
हमारी बिजलीयों से रोशनी बने न बने.
या तो तुमको, या हमें मुंहको मोडना होगा,
सिर्फ घूंघट से भीत नजर की बने न बने.
ये अश्क एक टूटी तलैयाके टुकडे हैं,
किे इनसे बाग कोई शबनमी बने न बने.
तुम्हारे बीजको बोना बहुत जरूरी है,
सिर्फ 'घनश्याम' से फसलें हरी बने न बने.
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पर-घर
Computer-Art: Ghanshyam Thakkar