ये जश्न है, मरा ‘घनश्याम’ स्याही में डूब कर
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गझल
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घनश्याम ठक्कर (ओएसीस)
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हुस्न जब खुदा की इनायत है, उस पे पर्दा क्युं है?
फिर भी ‘पर्दा हो तो अच्छा’ ऐसा लगता क्युं है?
युं तो मारे शरम के दोनो ‘पानी पानी’ है.
समुद्र शांत तू, उछलता मेरा झरना क्युं है?
तुमने तो मेरी आशिकी पे युं सवाल किया,
जैसे बहका कोई पूछे, 'कोई बहका क्युं है?'
तेरे खयाल से इस दिल में दर्द उठता है
तेरा खयाल ही उस दर्द की दवा क्युं है
ये जश्न है, मरा ‘घनश्याम’ स्याही में डूब कर,
अय आशिक-ए-गझल, तू उस के पीछे रोता क्युं है
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Ghanshyam Thakkar
Oasis Thacker