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कवि घनश्याम ठक्कर गुजराती काव्यसंग्रह |
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कवि घनश्याम ठक्कर गुजराती काव्यसंग्रह |
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भूरी शाहीनां खळखळ
कवि घनश्याम ठक्कर गुजराती सीडी काव्यसंग्रह |
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Photo: Ghanshyam Thakkar
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मेरा चेहरागझलघनश्याम ठक्कर
मैंने देखा था हरेक कांच में बेघर मेरा चेहरा, सिंदूर-ए-मांग शीशे पे लगी, मंज़र मेरा चेहरा
वो दर्पन का हरेक जर्रा था कांटा कांच का खूनी, कि जैसे कांच की तस्वीर पर ठोकर मेरा चेहरा
तुम अगर नजरें गिराओ, नजर आएगा पानी में, अगर पथ्थर गिराओ तो बने अंधड़ मेरा चेहरा
कोई दर्पन किसीके दिल के दरवाजे पे मत रखना, कभी अंदर मेरा चेहरा, कभी बाहर मेरा चेहरा
उडे आकाश में शायर, जमीं पे वो भी है इन्सां, कभी 'घनश्याम' ये चेहरा, कभी 'ठक्कर' मेरा चेहरा |
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Posted by Ghanshyam Thakkar |
राधाकी व्यथा (गीत) - घनश्याम ठक्कर
पर-घर
Computer-Art: Ghanshyam Thakkar