Email : info@oasisthacker.com |
Downloads & Samples |
copyrights: Oasis Thacker |
|
|||||||
|
|||||||
| |||||||
कवि घनश्याम ठक्कर गुजराती काव्यसंग्रह |
|||||||
कवि घनश्याम ठक्कर गुजराती काव्यसंग्रह |
|||||||
भूरी शाहीनां खळखळ
कवि घनश्याम ठक्कर गुजराती सीडी काव्यसंग्रह |
|
![]() |
राधाकी व्यथा |
(गीत) |
घनश्याम ठक्कर |
मिलनेका मन पहूंचा सो जोजन दूर, हिचकिचाती हूं पर-घरके पीछे,
गोकुलमें पहचाना श्याम तुझे, द्वारिकामें पहचानुंगी मैं किस तरीके?
झनझनती पायल सम झूमते कदंब, अब सुनाते हैं हीरोंकी खनखन!
व्रजकी वो कंटीली बेरी को आलिंगन करते भी होती थी तोदन?
किसको बताउं तेरे मरमरके महलोंमें, स्वप्नमें भी चल कर क्या बीते?
मिलनेका मन पहूंचा सो जोजन दूर, हिचकिचाती हूं पर घरके पीछे,
गोवर्धन-गिर को उठाया तेरे संग, तेरा मोरपिच्छ लगता अब भारी!
यमुनाजल: जैसे कि हेमरस उबलता हो, तडपु मैं प्यासकी मारी....
रण-नौबत अंत में बजानी हो जिसको, वो बंसीके सुरसे क्युं जीते?
गोकुलमें पहचाना श्याम तुझे, द्वारिकामें पहचानुंगी में किस तरीके?
---------------------------
Photo: Web
राधाकी व्यथा (गीत) - घनश्याम ठक्कर
पर-घर
Computer-Art: Ghanshyam Thakkar