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कलापीकेतन - घनश्याम ठक्कर
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भूरी शाहीना कूवा कांठे

कवि घनश्याम ठक्कर

गुजराती काव्यसंग्रह

Jambudi KshanaNa Prashna Padare

जांबुडी क्षणना प्रश्नपादरे

कवि घनश्याम ठक्कर

गुजराती काव्यसंग्रह

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नव-रात्रि
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गरबा रास

 

वैरागी

अछांदस

घनश्याम ठक्कर

 

सदियों से 

स्पर्श के अमृत सींच कर

एक उंगली की

परवरिश की.

 

कट जाने पर

वह उंगली

छिपकली की कटी पूंछ जितनी भी हिल न सकी,

तब मुझे महसूस हुआ:

मैं तो जन्म से ही बैरागी हूं!

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घनश्याम ठक्कर रचित गुजराती काव्य 'वैरागी' (काव्यसंग्रहः जांबुडी क्षणना प्रश्नपादरे - १९९३) का भावानुवाद.

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'वैरागी' काव्य के संदर्भमें गुजरात के महान कवि, समीक्षक और साहित्य-प्राज्ञ श्री लाभशंकर ठाकर की समीक्षा

ला.ठा. को व्याप्ति, अव्याप्ति और अतिव्याप्ति के दोष के खतरे के बावजुद भी अत्याधिक वृतान्त करनेमें दिलचस्पी है. तो एक कथन फेंक रहा हूं, " जो वैरागी नहीं, वह कवि नहीं."

इस निवेदन प्रेरित उकसाहट की असरमें वर्तमान और भूतकाल के कई काव्यग्रंथों को फेंक देने के लिये तत्पर पुस्तकाघ्यक्ष, रूको.

ऐसा करोगे तो  अभ्यासी विद्वानों को अ-काव्य के दृष्टान्त कैसे मिलेंगे?

सौजन्यः

घनश्याम ठक्कर रचित गुजराती काव्यसंग्रह 'जांबुडी क्षणना प्रश्नपादरे' (१९९३) की, श्री लाभशंकर ठाकर लिखित प्रस्तावना '

गुजराती आधुनिक कवितानो एक ध्यानपात्र अवाज (गुजराती आधुनिक कविता की एक ध्यान देने योग्य आवाझ').

अनुवादः घनश्याम ठक्कर

 

 

Posted by

Ghanshyam Thakkar 

 

 

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राधाकी व्यथा (गीत) - घनश्याम ठक्कर

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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